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पवन द्वारा निर्मित स्थलाकृतियां

🌻🌻पवन द्वारा निर्मित स्थलाकृतियां🌻🌻

यारडांग:

• कड़ी और मुलायम चट्टानों की परतें जब पवन की प्रवाह की दिशा में होती है तो कड़ी चट्टानों की अपेक्षा मुलायम चट्टानों का कटाव अधिक होता है तथा वहाँ नालीनुमा गड्ढे बन जाते हैं। इसे ही यारडांग कहा जाता है।

इन्सेलबर्ग:

• पवन के प्रभावकारी अपरदन के कारण चट्टानें सपाट हो जाती हैं और यत्र-तत्र छोटे-छोटे कड़े चट्टान टीले के रूप में उभरे रह जाते हैं। इस तरह के ढांचे को इनसेलबर्ग कहा जाता है।

ड्राइकांटर

• भूमि पर बिछे कठोर चट्टानी टुकड़ों पर बालुयुक्त हवा की चोट पड़ने से उनका आकार घिसकर चिकना व तिकोना हो जाता है। ये तिकोने टुकड़े ही ड्राइकांटर कहलाते हैं।

बालुका स्तूप:

• ऐसे टीले जो पवन द्वारा उड़ाकर लाई गयी रेत आदि पदार्थों के जमाव से बनते हैं, बालुका स्तूप कहलाते हैं।

• ये पवन की दिशा में अपनी स्थिति बदलती रहती है।

• बरखान अर्द्धचंद्राकार बालू का टीला होता है, जिसके दोनों छोरों पर आगे की ओर नुकीली सींग जैसी आकृति रहती है।

लोएस:

• लोएस मैदान रेगिस्तान क्षेत्र के बाहरी इलाके में हवा द्वारा लाए गए बहुत पतले मृदा कणों के जमाव के कारण व्यापक रूप से बनते हैं।

• इसकी मिट्टी में जब जल मिलता है तो वह बहुत उपजाऊ मिट्टी में बदल जाती है।

• लोएस के सबसे व्यापक जमाव उत्तरी चीन में पाए जाते हैं जो गोबी मरुस्थल से उड़ाकर लाए गए हैं।

पीडमेंट:

• मरुस्थलीय प्रदेशों में किसी पर्वत, पठार, या इन्सेलबर्ग के पदीय प्रदेशों में मिलने वाले सामान्य ढालयुक्त अपरदित शैल सतह वाले मैदान को पीडमेंट कहा जाता है।

प्लाया:

• रेगिस्तान क्षेत्रों में पहाड़ियों से जुड़े घाटियों में अल्पकालिक धाराओं द्वारा बनाई गई अस्थायी झीलों को प्लाया कहा जाता है।

बजादा:

• बजादा का निर्माण पीडमेंट के नीचे तथा प्लाया के किनारे पर जलोढ़ पंखों के मिलने से होता है।

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